बेनाम शायरी - 1 Er.Bhargav Joshi અડિયલ द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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बेनाम शायरी - 1

"बेनाम शायरी"

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क्रूर भी है, निष्ठुर भी है, वो खुदा मेरा मगरुर भी है।
"बेनाम" हलक में बैठा वो खुदा मेरा गुरूर भी है।।

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कोई लफ्जो के मोल यू ही चुकाता रहता है,
बिन मौसम बारिश से आंसू बहाता रहता है।

वक्त और कायनात सबको साथ नहीं देती,
दर्द में खुद को हरघड़ी वो जलाता रहता है।।

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मुक्कमल ख्वाब के पीछे यूं तो भागा नहीं करते।
मंजिले मिलती रहेगी, नशा ज्यादा तो नहीं करते।।

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अनगिनत गलतियां और हजारों जख्म है उधार हम पर।
तुम तो मोज ऐ बसर में हो और लटकती तलवार हम पर।।

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नहीं करना है इश्क जो हमे बीमार करे।
आजाद होने का फिर हम इंतजार करे।।

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ये जो वक्त की कलाबाजियां दिखती है तुम्हे।
"बेनाम" यकीन मानो हरदम छलती है तुम्हे।।

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ये तसव्वुर जो तुम्हे खुद के नाज का है।
यकीन मानो वो सिर्फ बस आज का है ।।

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ऐसा नहीं कि जख्म गेहरा नहीं।
बस अब आंखो पर पेहरा नहीं।।

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अपनी ही उलझनों से थका हारा हूं,
तुम्हे लगता है मैं तो बस आवारा हूं।

ना हर्फ कभी कहां क्यों !? मैं हारा हूं।
अपने जज्बातों से खुद को संवारा हूं।।

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ये तो मोहोबत के असुल है दर्द गहरे दिए जाते है।
पलके झुकाकर यहां अक्षर कत्ल किए जाते है ।।

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तेरी ही खामोशियों ने हरदम है बाजी मारी।
हमारे हाथो में ना रही फिर जिंदगी हमारी।।

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उन्हें अपने मखमली हुस्न पर जो नाज है।
वो बस पल दो पल का ही तो हमसाज है।।

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तुम्हे क्यों लगता है कि हम बड़े मगरुर है !?
"बेनाम" ये तुझसे जुड़ने से सारा गुरूर है।।

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कुछ तो कम कर ये इनायते दर्द की।
कैसे जागे हम ये राते सारी सर्द की।।

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तुम तो लाजवाब हुस्न खता रखती हो।
सर्द की मौसम में गर्म हवा रखती हो।।

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वो जमाना अलग था जब लोग दीवाने थे।
अब न वक्त बेगाना है ना लोग दीवाने है।।

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ये खामोशियां किसी गहरे जख्मों की निशानी है।
"बेनाम" हंसता हुआ चहेरा और आंखो में पानी है।।

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ये जिंदगी का दौर ए बदलाव है राही,
पलकों पर ही कुछ ठहराव है राही ।

बेबुनियाद नहीं तड़पन उन सबकी,
बड़े ही चुभते सब में घाव है राही।।

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जब टूटी आंखो से वो प्यारी नींद हमारी।
तेरे ही ख्वाबों में गुजरी फिर रात हमारी।।

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रूठे को तो अक्षर मना भी लिया जाता है।
जो बदल गए है उनसे रुसवाई केसे करे!?

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पता तो करो ऐ मेरे रेहनुमाओ तुम भी।
वक्त बेवफ़ा है या फिर मै ही बेवफ़ा हूं।।

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Thank.... you 😊
.... ✍️ Er. Bhargav Joshi

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[ क्रमशः ]